भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लता-गुल्म / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:23, 17 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुलसी - ने फूल फूल क रुचि विशद श्यामा तुलसी-गाँज
कहओ तदपि तनिकहि पुजय दीप लेसि धनि साँझ।।36।।
पान - मह - मह फूल वितान, ने गमगम फल अछि लदल
केवल पाते पान, रसिक अधर रङि अछि सफल।।37।।
अमरलत्ती - ने जड़ि ने फल-फूल, पता न पात क, डाँट टा
किन्तु भाग्य समतूल, अमर-लती अछि वैह टा।।38।।