भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

व्यवसायी / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:34, 17 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गंधी - गतर - गतर मे अतर मलि पहुँचल मेहतर गाम
डाँटल गंधी केँ, हटह! केहन गन्हाइछ घाम!!92।।
ई गुलाब, ई केबड़ा, आ’ खस अतर अतूल
सुनि पूछल - पुनि कहाँ अछि तीरा तगर अढूल?।।93।।

सोनार - की चानी नहि गढ़य ओ, की नहि पीटय ताम?
सोन क गौरब देखिकेँ धरय सोनारे नाम!!94।।

तमोली - ने सोना - चानी गढ़ी, मे मधु मधुर, न इत्र
तदपि मुँह क लाली अहिँक बलहिँ तमोली मित्र।।95।।