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ध्यान-बोध / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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पुछल शिष्य, प्रभु! कहिअ योग ओ ध्यान ऋद्धिकेर कोन उपाय
मन निर्भीक कोना उन्मुख हो परम तत्त्व संबोध सदाय
कहलनि बुद्ध, प्रथम योगक सोपान प्रेम-पथ गहिअ निरन्त
सभ प्राणी पर, शत्रु उपर धरि सकता ममता स्नेह अनन्त
तदुपरि दया-द्रवित भय प्राणी मात्र लखिअ दुर्गत दयनीय
मन पाषाण गलित भय करुणेँ हिम द्रव बनय सहज नमनीय
तखन वृत्ति मुदिता गहबे पर - सुखकेँ निरखि हृदय आनन्द
पुनि कालुष्य जगत व्यापित रहि दूर बनिअ अकलुष निबन्ध
पंचम थिति सुख-दुखक परे रहि राग - द्वेषसँ होइ वियुक्त
तखन शान्ति लहबे अक्षय, पुनि अभय भूमिका रहब नियुक्त