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स्नान-वर्णन / श्रृंगारहार / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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धार - मुख सरोज, आवर्त पुनि नाभी केस सेमार
पुलिन नितम्बवती सजल स्वय नहाइछ धार।।1।।

स्नानछवि - अधर रंगिमा, मुख तिलक, दग अंजन नहि रंच
अलक बध खुजले तदपि नहेनिहारि छवि - मंच।।2।।

जड़ता - जल! तोँ जड़ साँचे थिकह, पबितहुँ युवतिक संग
अग अग रति रंग पुनि नहि उष्णता प्रसंग!!3।।

समस्या - सरिता छथि वनिता स्वय सिन्धु मिलन हित व्यग्र
जलो जड़े पुनि ककर सङ सलिल विहार समग्र।।4।।

नल नहान - नल जलधार नहाय शुचि रुचि धनि तन झलकैछ
मदन पटाओल जनु कनक-लता ललित बिकसैछ।।5।।

वस्त्र-परिवर्तन - सटल वसन हठि हटय नहि फेरनिहारिक संग
अंग - अंग रति रंग पुनि नहि उष्णता प्रसंग।।6।।

पुनरुक्ति - कनक-कलशिनी कलश लय जल हित नल दिस जाय
पुनरुक्तिहु नव उक्ति वश अलंकार बनि जाय।।7।।