Last modified on 20 मई 2015, at 10:22

प्रकीर्ण / श्रृंगारहार / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:22, 20 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पडुआक वधू - ओढ़ि आवरन आभरन सुवरन कति छवि मंति
हरलि हमर रसिक क हृदय रंगिनि के रसवंति?।।1।।
कर बसि, भुज धरि, संग बसि, गुप चुप नित बतियाथि
केहन रंगिनी संग लय प्रिय न समक्ष लजाथि।।2।।