भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नायिका-वर्णन / श्रृंगारहार / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:22, 20 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वकीया - युव तप योगहिँ अंगनहि मंगल जंगल पाल
चामर, मृग, शुक, पिक, करी, केहरि, शिखी, मराल।।1।।

नवोढा - सुमुखि विमुखि, नत नयन, तन झाँपि, काँपि नहि भाखि
विरत रतहु कत देथि सुख नबल वधू मधु माखि।।2।।

प्रौढ़ा (प्रेमगर्विता) - उत्कट मधुरो माहुरे सखि? कहबी से साँच
प्रिय क प्रेम तत गाढ़ जे सहि न सकी हम आँच।।3।।

सौन्दर्यगर्विता - मुहेँ निहारथि, विधु न पुनि, कुहू न सूनथि बोल
हमर प्रेयसी श्रेयसी प्रिय घुमि - घुमि कर घोल।।4।।

पदुमिनी आदि - ने वन, नेमलय क पवन, ने मधु माधव मास
बुझल कोनहु नव पदुमिनिक अगक सुरभि सुवास।।5।।
मन्द-मन्द गति हस्तिनी, चित्रिणि पहिरि पटोर
कंबुकंठि, सुरभित वयस पदुमिनि, रूप सङोर।।6।।

परकीया - राधा कृष्णक कथा कहि वाचक भेला विभोर
एम्हर श्राविका हृदयमे प्रयणक उठल हिलोर।।7।।

वचनविदग्धा - दूर गाम जंगल सघन पथ निर्जन घन घोर
एकसरि छी, दोसर अहीँ पहुँचायब वर जोर।।8।।

सामान्या - पुर जनपद सरिता बहय, सुरभित लता दिगंत
गण-वनिता जन - गणक मन भरइछ रूप अनंत।।9।।
वार वधू कल नादिनी उच्छल वयस तरंग
सजल कुटिल गति कल-मुखर करय कूल तरु भंग।।10।