भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डूबल उतराइल / मोती बी.ए.

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:16, 20 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोती बी.ए. |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब हम सागर में बूड़त-उतरात
बचे खातिर
कवनो थाह लगावतानी
त कहे वाला कहता-
हम मनबढ़इ करतानी
कहता कहता-
अपने मन के रोक
छपटा मति
धीरज राख

हम जबले ओकर बाति सूनतानी
तबले कई गच्चा खा चूकतानी
साँसि टँगा जातिबा
जीव तर-ऊपर होख लागता

कहे वाला कहि के चलि जाता
हम सागर में फेनू तरा जातानी
बूड़त उतरात छपटाए लागतानी
सागर थहावे लागतानी
सहारा बदे हाथ बढ़ावे लागतानी
का हम
तराइले रहि जाइबि
कबे उपराइब ना!
22.06.93