भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज होरिलवा के देखन चलूं / मगही

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:32, 11 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatSohar}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

न्योछन

आज होरिलवा के देखन चलूं।
आज होरिलवा के चूमन चलूँ॥1॥
मोर होरिलवा हइ<ref>है</ref> पुनियाँ<ref>पूर्णिमा</ref> के चनवा<ref>चाँद</ref>।
अपन होरिलवा के खेलावँन<ref>खेलाने</ref> चलूँ॥2॥
राइ<ref>छोटी सरसों, जिसका उपयोग मसाले में होता है।</ref> नोन<ref>नमक</ref> लेके निहुँछन<ref>ओंइछन। निछावर करने के लिए। एक प्रकार का उपचार, जिसमें किसी के कुशल-क्षेम या रक्षा के लिए राई-नोन या कोई अन्य द्रव्य उसके सिर या सभी अंगों के ऊपर से घुमाकर फेंक दिया जाता है या कहीं बाहर अथवा आग में डाल दिया जाता है, जिससे शिशु कुदृष्टि के दुष्परिणामों से सुरक्षित रहता है।</ref> चलूँ।
अपन-अपन नजरी<ref>नजर, दृष्टि</ref>

शब्दार्थ
<references/>