Last modified on 12 जून 2015, at 10:57

हहर हवेली सुनि सटक समरकंदी / गँग

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:57, 12 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गँग |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBrajBhashaRachna}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हहर हवेली सुनि सटक समरकंदी,
धीर न धरत धुनि सुनत निसाना की।
मछम को ठाठ ठठ्यो प्रलय सों पटलबौ 'गंग',
खुरासान अस्पहान लगे एक आना की।
जीवन उबीठे बीठे मीठे-मीठे महबूबा,
हिए भर न हेरियत अबट बहाना की।
तोसखाने, फीलखाने, खजाने, हुरमखाने,
खाने खाने खबर नवाब ख़ानखाना की।