भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज्योतिर्गीत / मुकुटधर पांडेय
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:21, 17 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकुटधर पांडेय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
घर-घर दीप जले
कज्जल-कूट-कुहू-कृष्णा यह
राका में बदले
कर निवास अचला बनकर तू
अयि चले कमले
हो तेरे वाहन उलूक के
कोकिल-कूक गले
जड़ता की जड़ तक जल जावे
सुमति-शिखा निकले
हृदय लोक आलोक पूर्ण हो
ज्योतिर्गीत ढले।