भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तलाश / बाबूलाल मधुकर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:57, 1 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबूलाल मधुकर |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे चारों ओर शिविर लगे हुए हैं
जहाँ नयी-नयी तालीमें दी जा रही हैं
दिशाओं में शोर है, इतिहास बदला जा रहा है
दलित मूल्यों के पाये ढाहे जा रहे हैं
परम्परा के अनुसार कोई मसीहा या कोई—
अवतार जन्म ले रहा है
मैं एक अदना आदमी की हैसियत से
शिविर को देख रह हूँ
ग्लोब पर खड़ा होकर
भूगोल को देख रहा हूँ
जब कभी मेरी अँतड़ियों की ऐंठन से
आह और कराह निकलती है
तभी फुँफकार के अपराध में
मेरी क़ौम की बस्तियों में
आग लगती रही है आग
जिसे शिविर के लोग
तमाशे की तरह देखते रहे हैं
मसीहा मुस्कुराता रहा है
और मैं चौराहे पर खड़ा होकर
अपनी जमात की तलाश करता रहा
तलाश!!