भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तानाशाह और बच्चे / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:29, 6 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=एक और...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चे खेल रहे थे छत पर
भूलकर इस उखड़ी दुनिया के सारे उखाड़-पछाड़
उबले हुए दुख और यह

...मगर
नाराज है तानाशाह को यह कतई पसंद
नही है
कि बच्चे खेलें अपनी मर्जी का खेल
ऐन हअपनी मर्जी के वक्त में
तानाशाह को पसंद नहीं है
बच्चे बनाएं अपनी मर्जी का चित्र
अपनी मर्जी की लकीरें
उसमें मर्जी के रंग भरें

तानाशाह को पसंद नहीं
बच्चे जोर-जोर से करें बातें
हंसें-बेबात खिलखिलाएं
जब मेहमान डाइनिंग टेबल पर तनकर बैठे हों !
भूलकर उसकी और महमानों की महिमामयी उपस्थिति
बच्चे अपने गुड्ढे-गुड़ियों, नाटक, चित्रकला में रहें लीन
तानाशाह को यह पसंद नहीं है
कि बच्चे खुद सोचें
खुद रोपें
खुद रचें
खुद बनाएं नक्शा और उस पर चलें ...
तो फिर जो बेशकीमती नक्शा उसने तैयार करवाया है
होशियार आर्किटेक्टों, इंजीयिरों से
खूब सोच-समझकर तैयार करवाया है जो
अंतर्राष्ट्रीय फ्रेम
बिजूका बच्चे का टाईदार
उसका क्या होगा ?

सो तानाशाह गुस्से में हैं
वह झिड़कता है-तेज नकसुरी आवाज में
झिंझोड़ता है बेरहमी से
डाल- हरी डाल-
उसमें दम ही कितना-
नया बिरवा ही तो है !
भरभराकर गिर जाता है बच्चों
का खेल संसार !

रुक गया है नाटक अब
रुक गई है गति
सहमे गुड्ढे-गुड़ियां भालू ऊंट खरगोश
मिट्टी और कपड़े...
बच्चे सहम गए हैं
मेहमान खुशी-खुशी विदा हुए-
बुद्धिजीवी मसिजीवी
मस्त्ष्कि मरू विशाल !!

तानाशाह उठता है सुकून से
अपने लिखने की मेज पर जा बैठता है
खोलकर सोने का पैन
लिखेगा अब बच्चों मनोविज्ञान
पर कोई बढ़िया सा लेख

उसे इंटरनेशनल जर्नल में छपाएगा ।