भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उठो भई उठो / श्रीधर पाठक
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:55, 8 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीधर पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हुआ सवेरा जागो भैया,
खड़ी पुकारे प्यारी मैया।
हुआ उजाला छिप गए तारे,
उठो मेरे नयनों के तारे।
चिड़िया फुर-फुर फिरती डोलें,
चोंच खोलकर चों-चों बोलें।
मीठे बोल सुनावे मैना,
छोड़ो नींद, खोल दो नैना।
गंगाराम भगत यह तोता,
जाग पड़ा है, अब नहीं सोता।
राम-राम रट लगा रहा है,
सोते जग को जगा रहा है।
धूप आ गई, उठ तो प्यारे,
उठ-उठ मेरे राजदुलारे!
झटपट उठकर मुँह धुलवा लो,
आँखों में काजल डलवा लो।
कंघी से सिर को कढ़वा लो,
औ’ उजली धोती बँधवा लो।
सब बालक मिल साथ बैठकर,
दूध पियो खाने का खा लो।
हुआ सवेरा जागो भैया,
प्यारी माता लेय बलैया।
-रचना तिथि: 8.4.1906, श्रीप्रयाग;
मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विकास, 16-17