भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हँसी का इनजेक्सन / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:18, 9 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBaalKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
क्या होता है बी.पी. दादू
हुआ आपको सब कहते जो?
मुस्कान देख कर तेरी बस
दौड़ कहीं पर जाता है जो।
पर बेचैन आपको करता
कहती दादी मुझको दादू।
अरे नहीं, ये बी.पी क्या है
बहुत स्ट्रांग हैं तेरे दादू।
‘अच्छा फिर तो पिट्टी कर दो
बी.पी. की अब झट से दादू।‘
‘पर इनजेक्सन ज़रा हँसी का
पहले आकर मुझे लगा तू!’