भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ा / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 10 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ा, लिया शिखर को चूम।
शून्य रहीं उपलब्धियाँ, उसी बिंदु पर घूम॥
उसी बिंदु पर घूम, हाथ कुछ लगा न अब तक।
बहकाओगे मित्र, स्वयं के मन को कब तक।
'ठकुरेला' कविराय, याद रखती हैं पीढ़ी।
या तो छू लें शीर्ष, या कि बन जायें सीढ़ी॥