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सीधी लकीर / हेमन्त देवलेकर

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केवल कलम से ही
खींच सकती थी तू
एक सीधी लकीर।
पर तेरी कलम ठहरी
मनमौजी, खिलंदड़

चलते रस्ते अपने दादाजी का हाथ
छुड़ाकर जैसे भागती है तू
बिना उछलकूद के
वह भी कोई सीधी राह चलती क्या?

लेकिन जब उसे
तेरे हाथ पर चटाक् से पडने वाली
स्केल का डर दिखाया गया
तो गर्दन नीची करके
हुक्म मानने वाली शहाणी बच्ची की तरह
छुटे हुए तीर सी,
सीधी-सीधी चली थी वह

अगर तुझे
थोड़े तालाब, थोड़े टीले
अपनी लकीर पर पसंद हों
तो कलम को
स्केल की धौंस मत दिखाना
...फिर देखना।