भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गणित की किताब / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:05, 11 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त देवलेकर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तूने अब फिसलना भले ही छोड़ दिया हो
पर फिसलपट्टी ने
तेरा साथ नहीं छोड़ा है
वह तेरी गणित की किताब में
वर्गमूल का चिन्ह हो गई है
कभी जमीन छूता
कभी आसमान होता -
सी सॉ
गुणा का चिन्ह बन गया है
और हर वक्त टप्पे खाती,
लुढ़कती तेरी गेंद
अंकों को अनंत तक
दौड़ाने में दक्ष हो गई है
अब शून्य कहलाती है
तेरे आईसक्रीम का कोन
बदल गया है शंकु में
तेरे चित्रों के सारे पहाड़
अब त्रिभुज बन गए हैं
और उगता हुआ सूरज
वृत्त के रूप में पूरा उग चुका है