Last modified on 13 जुलाई 2015, at 14:29

इक और सुब्ह / इमरोज़ / हरकीरत हकीर

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:29, 13 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इमरोज़ |अनुवादक=हरकीरत हकीर |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तेरे ख्यालों संग रात भर जागती रही
और सुब्ह होने से पहले इक और सुब्ह देखती रही
मिलूंगी उससे और जाग कर देखूंगी उसे
उसके ख्यालों को भी .
जब मिली...
देखते ही कहने लगा
तुझे उडीक-उडीक कर
देख मैं क्या से क्या हो गया हूँ
तुम मुझे कब के जानते हो?
जब से मैं अपने आपको जानता हूँ
ठीक है फिर नहीं जाऊँगी कहीं
इक बार माँ जनती है
और दूसरी बार मुहब्बत
देख आज मेरा जन्मदिन है
सिर्फ तेरे साथ मनाने वाला
फिर तो आज मेरा भी जन्मदिन हो गया...
चल मिलकर मनाएं
यह दो जनों का एक ही जन्मदिन
तेरे ख्यालों संग भी
मेरे ख्यालों संग भी
सारी रात इक -दूजे संग जागकर
देखेंगे सुब्ह होने से पहले
हो रही इक और सुब्ह तेरी मेरी सुब्ह...