यदि पेड़ों पर उगते पैसे / शेरजंग गर्ग
अनुभव होते कैसे-कैसे
जीवन चलता जैसे-तैसे,
सारे उल्लू चुगते पैसे
यदि पेड़ों पर उगते पैसे !
जो होता अमीर ही होता
फिर ग़रीब क्यों पत्थर ढोता,
क्यों कोई क़िस्मत को रोता
जीवन नींद चैन की सोता,
हर कोई पैसा ही बोता
स्वप्न न आते ऐसे-वैसे।
पैसों की हरियाली होती
गाल-गाल पर लाली होती,
बात-बात में ताली होती
कोई जेब न ख़ाली होती,
रात न बिलकुल काली होती,
तब हर दिन दीवाली होती।
पैसा ताज़ी हवा नहीं है
सब रोगों की दवा नहीं है,
सचमुच नया रोग है पैसा
छल-बल का प्रयोग है पैसा,
हम इसको अपनाते कैसे,
यदि पेड़ों पर उगते पैसे।
पैसे से इनसान बड़ा है
उसका हर ईमान बड़ा है,
हरियाली का पूजन करता
सृजन सदा ही नूतन करता,
प्रकृति परम विकृत हो जाती
यदि पैसों के पेड़ उगाती,
सब मानव बन जाते भैंसे,
काँटे बनकर चुभते पैसे,
यदि पेड़ों पर उगते पैसे।