भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केले का छिलका / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 14 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> सड...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सड़क पर पड़ा था जी
केले का छिलका।

पहले तो बिल्ली मौसी
घर से निकलीं,
छिलके पर पैर पड़ा
तो धम्म से फिसलीं।
ख़र्चा भरना पड़ा
डॉक्टर के बिल का।

फिर थोड़ी देर बाद
चूहे जी निकले,
एक क़दम चलते ही
वो भी जा फिसले।
गिरते ही दौरा
पड़ गया उन्हें दिल का!
सड़क पर पड़ा था जी
केले का छिलका।