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महँगाई के दौर में / सूर्यकुमार पांडेय
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दाना लेने चिड़िया निकली,
महँगाई के दौर में।
घर का राशन ख़त्म हो गया
खाना बहुत ज़रूरी है,
पेट पालना है बच्चों का
यह कैसी मजबूरी है?
जिस दुकान पर भी वह जाती,
चीज़ें सही नहीं मिल पातीं,
घोर मिलावट सब कुछ नक़ली,
महँगाई के दौर में।
लम्बी लाइन देख-देखकर
हिम्मत टूट गयी उसकी,
थैली और अठन्नी दाबे,
वह तब चुपके से खिसकी।
सोच रही किस दर को जाऊँ,
सस्ते में राशन ले आऊँ,
मुश्किल में, है हालत पतली,
महँगाई के दौर में।