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बारह बरीस के नन्हुआँ कवन दुलहा / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बारह बरीस के नन्हुआँ<ref>नन्हा, छोटा</ref> कवन दुलहा, खेलत गेलन बड़ी दूर।
उहवाँ<ref>उस जगह, वहाँ</ref> से लइलन<ref>लाया</ref> हारिले सुगवा<ref>हारिल तोता</ref> तिहलन हिरदा लगाय॥1॥
सब कोई पेन्हें अँगिया<ref>कुरता, अँगरखा</ref> से टोपिया, सुगवाहिं अलुरी<ref>हठ, जिद</ref> पसार<ref>पसारना</ref>।
हमरा के चाहीं मखमल चदरिया, हमहूँ जायब बरियात॥2॥
सब कोई चढ़लन हथिया से घोड़बा, हमरा के चाहीं सोने के पिंजड़वा।
हमहूँ जायब बरियात॥3॥
सब कोई खा हथी<ref>खाते हैं</ref> पर पकवनवाँ, हमरा के चाहीं बूँट<ref>चना</ref> के झँगरिया<ref>हरे चने की ढेंढ़ी, फली</ref>।
हमहूँ जायब बरियात॥4॥
सब कोई देखे बर बरियतिया, सासु निरेखे धियवा दमाद।
अइसन<ref>ऐसा</ref> लाढ़ी<ref>लाड़ला</ref> रे बर कतहूँ न देखलूँ, सुगवा लिहलन बरियात॥5॥
आहि<ref>‘माई’ का अनुवादात्मक प्रयोग</ref> जे माई पर परोसिन, सुगवा के डीठि जनि नाओ<ref>लगाओ</ref>।
बन केइ सुगवा बनहिं चली जइहें, संग साथी अइले बरियात॥6॥

शब्दार्थ
<references/>