जानकी रामायण / भाग 1 / लाल दास
प्रथम चरित्रम्
मंगलम्
चौपाई
मंगल मूरति करिवर बदन। शंकर सुत सुख सिद्धिक सदन॥
गणनायक दायक फल चारि। प्रणमिय तनिक चरण शिर धारि॥
श्री लक्ष्मीनारायण चरण। सेविय मन दय भवभय हरण॥
सीता राम जनिक अवतार। सगुणे कयल चरित्र अपार॥
पूरण ब्रह्म मनुज तन घयल। लोकक हित कति लीला कयल॥
जनिक मनोहर चरित उदार। गाबि होथि नर भव निधि पार॥
तनि पद नति करि बारम्बार। करथु पतित पावन निस्तार॥
गुरु पद पंकज रज निज नयन। अंजन करिय लहिय सुख चयन॥
छूट अविद्या आदिक दोष। विमल ज्ञान पाविय परितोष॥
मारूत सुत पद वन्दन करिय। जनिके वल भवनिधि सन्तरिय॥
पवन तनय जौं होथि सहाय। सकल कष्ट क्षणमय छुटिजाय॥
जनिकाँ उर रामायण माल। महावीर से होथु दयाल॥
जे ऋषि काव्यक प्रथम स्नान। तनिपद करिय प्रणाम विधान॥
रहयित राम नाम विपरीति। पाओल ब्रह्मक पद सुख रीति॥
दया करथु से देथु प्रसाद। जेहि सौं छूटय मनक विषाद॥
शिरधरि देव पितर पद धूर। करथु हमर अभिलाषा पूर॥
वैदेही महिमा सुख सार। कहलनि बालमीकि विस्तार॥
भारद्वाज सुनल मन लाय। सीता चरित ललित समुदाय॥
बजली सीता भाषा जैह। तेहि मे कहब कथा हम सैह॥
दोहा
नहि विद्या कविता विभव, मन में अछि अभिलाष।
जगदम्बा पूरण करथु, छोड़बथु, मानस घाख॥
सोरठा
कविगण होथु दयाल, दूखण लखि भूषण करथु।
कवि गुण वर्जित लाल, कृपा पात्र जानथु अपन॥