मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
राजा दसरथ जी पोखरा खनावले, घाट वँन्हावले हे।
कोसिला जी डँड़िया फँनावले<ref>पालकी पर चढ़ाकर ले गई</ref> राम नेहबावले<ref>स्नान कराती है</ref> हे॥1॥
मँड़वहि<ref>मण्डप में ही</ref> झगड़े धोबिनियाँ, निछावर<ref>न्यौछावर, नेग, दुलहे को ओइँछ कर दिया जाने वाला दान</ref> थोड़ अहे हे।
रघुबर के नेहलइया<ref>स्नान कराई</ref> हमहीं गजहार<ref>गजमुक्ता का हार</ref> लेबो हे॥2॥
जनु तोहें झगडूँ धोबिनियाँ, निछावर थोड़ अहे हे।
राम बिआहि<ref>विवाह करके</ref> घर अइहें, त तोरा गजहार देबो हे॥3॥
शब्दार्थ
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