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प्रेम एक निर्मल नदी / दयानन्द पाण्डेय

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प्रेम
जीवन के जंगल से सट कर बहती
एक निर्मल नदी है
जो सब के नसीब में नहीं होती

प्रेम
जीवन के मंदिर में
आस्था का एक मंत्र है
जिस का पाठ सब को नहीं आता

प्रेम
जीवन की कविता में
वह कालिदास है जिस को मौन शस्त्रार्थ में
कोई विद्योत्तमा हरा नहीं पाती

प्रेम
जीवन की सड़क पर वह ट्रैफिक है
जिस को संभालना किसी निश्चित क़ानून से नहीं होता
क़ानून की किताब यहां गुम हो जाती है

[29 दिसंबर, 2014]