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दर्द औरों का हम / प्रताप सोमवंशी

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दर्द औरों का हम उठाए हैं
रात-दिन यूं ही तो बिताए हैं

क्या मिला सोचते तो मर जाते
बस निभाएं हैं तो निभाए है

हर किसी से निबाह लेते हो
आपके कितनी आत्माएं हैं

वे हैं मेधा, मदर टेरेसा हैं
बेटियां मत कहो कि गायें हैं

सच ने हर दौर में ये देखा है
झूठ के पांव निकल आए हैं