Last modified on 26 जनवरी 2008, at 19:10

दर्द औरों का हम / प्रताप सोमवंशी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:10, 26 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सोमवंशी }} Category:ग़ज़ल दर्द औरों का हम उठाए हैं<br>...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दर्द औरों का हम उठाए हैं
रात-दिन यूं ही तो बिताए हैं

क्या मिला सोचते तो मर जाते
बस निभाएं हैं तो निभाए है

हर किसी से निबाह लेते हो
आपके कितनी आत्माएं हैं

वे हैं मेधा, मदर टेरेसा हैं
बेटियां मत कहो कि गायें हैं

सच ने हर दौर में ये देखा है
झूठ के पांव निकल आए हैं