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थोड़ी अच्छी खराब है साहेब / प्रताप सोमवंशी

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थोड़ी अच्छी खराब है साहेब
जिन्दगी एक किताब है साहब

उसको पहचान नहीं पाओगे
साथ रखता नकाब है साहेब

वो शराफत की बात करता है
उसकी नीयत खराब है साहेब

पांव के कांटे ने ये बतलाया
इस गली में गुलाब है साहेब

सारी अच्छाइयां हैं बस तुझमें
कैसा उलटा हिसाब है साहेब