भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलती फिरती किताब से कम है / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:53, 22 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव |अनुवादक= |संग्रह=अभी इ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलती फिरती किताब से कम है
वो मिरे इंतेख़ाब से कम है

डूब जाएगी अब मेरी कश्ती
इसमें पानी भी दाब से कम है

दिल की हसरत को आसरा न मिला
ये हक़ीक़त तो ख़्वाब से कम है

तुम न पढ़ पाओगे कभी मुझको
मेरा चेहरा किताब से कम है

हक़ की ख़ातिर उठाई जो आवाज़
वो किसी इंकलाब से कम है

चाहे जो कुछ हो हैसियत मेरी
हाँ मगर कुछ जनाब से कम है


मेरे सर पर मुसीबते इतनी
जिंदगी क्या अज़ाब से कम है

नोके नेज़ा भी मेरे सीने में
तेरे कडवे जवाब से कम है

ज़ख्म जो भी मिला मुझे तुझसे
वो अभी तक गुलाब कम से है