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जब दरे दिल पे दस्तकें होंगी / सिया सचदेव
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जब दरे दिल पे दस्तकें होंगी
ताज़ा फिर कुछ हिकायतें होंगी
शाख़ पे जब न कोयलें होंगी
कैसे गीतों की बारिशें होंगी
कब तलक वक़्त इम्तेहान लेगा
ख़त्म कब आज़माइशें होंगी
एक दिन तो मिलेगी आज़ादी
जब ये बेज़ा न बंदिशे होंगी
उतने होंगे तसव्वुरात अज़ीम
फ़िक्र में जितनी वुसअतें होंगी
टूटे दिल कब जुड़ेंगे ए मौला
हमपे कब तेरी रहमतें होंगी
ज़िंदा रहने का है ये जुर्माना
ज़िंदगी है तो मुश्किलें होंगी
कब से दहलीज़ पर पड़ी हूँ मैं
आपकी कब इनायतें होंगी
याद भूले से हमको कर लेना
आप को जब भी फ़ुर्सतें होंगी