भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग तर्कों के बीच अटके हैं / प्रताप सोमवंशी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 26 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सोमवंशी }} Category:ग़ज़ल लोग तर्कों के बीच अटके है...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोग तर्कों के बीच अटके हैं
रास्ते दूर-दूर हट के हैं

तेरे वादों के लंबे मरूथल में
कितने मासूम लोग भटके हैं

सोचता हूं अभाव है या करंट
एक-एक पल हजार झटके हैं

एक तस्वीर कैसे पाओगे
आईने सौ जगह से चटके हैं

आप बोलें जरूर तूफां पर
रहने वाले तो अप तट के हैं