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राधा तोहर बेचि रहल छथि देह / राजकमल चौधरी

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भाषाके अंजलिमे भरि कय श्रद्धा के रविफूल
आयल छी हे कवि-कोकिल हम तोहर स्मृतिकूल

गीत तोहर जाग्रत करइए एखनउँ सूतल प्रान
तइँ सभकाल करइ छी सभ मिलि तोहर चरचा-ध्यान
सभ उत्सव सभ पर्व गबइ छी अभिनव जयदेवक गान
भाषा-काननके छह तोँ विद्यापति, अमृत-पुष्प अम्लान

आबह मिथिलामे पुनि आबह जनजीवन सूर्य्य
महाराज शिवसिंहके हे सेनापति, जगबह क्रान्तिक तूर्य्य

रतिविपरीत आ रतिअभिसारक लिखने छह कत गीत
आब न शृंगारक जुग छइ, ने छइ कतउ सिनेह पिरीत
युद्ध,अकाल, बाढ़ि, रौदीसँ अछि जनसमाज भयभीत
कतउ ने भेटय शान्ति छनो भरि, किओ ने भेटय मीत

संस्कृति-सभ्यताक हिमालय भ’ गेल चूर्ण-विचूर्ण
भाषासाहित्य नायिकाक नयन अछि रक्त-अश्रुसँ पूर्ण

देश जरइए लोक मरइए, वस्त्र भेटय नइँ मुठियो भरि अन्न
साधारण दुखदुविधा अभावसँ सभक हृदय अछि छन्न
प्रगतिविकास सुखसाधन के सभ रस्ता भेलइ सभतरि बन्न
राधा तोहर बेचि रहलि छथि देह, कृष्ण तोहर अवसन्न
शक्ति उपासक हे विद्यापति, हे जनकवि राखह देसक लाज
आबह कंसक राज हटाकय लाबह कृष्णक समता राज

जतय ने नारिक लाज बिकाबय माय-बहिन नइँ बेचय देह
जतय ने प्यासेँ कानय धरती, बरिसय नइँ आगिक मेह
जतय ने बाढ़िक प्रलयधारमे बहि जाय गाम आ गेह
जतय ने पापी पेटक कारण, मरय देशसँ लोकक स्नेह

इएह हमर श्रद्धांजलि थिक आ इएह हमर आह्वान
तोरे स्वरमे गबइत छी मिथिला जन-जीवन के गान
तोहर स्मृति जलसँ भरैत छी सूखल सरिता प्रान