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सीताक मृत्यु: अहिल्याक जन्म / राजकमल चौधरी

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प्रस्तावना

बिना कएने धरम समाजक लोक-लाजक कोनो परवाहि
बद्ध पितामह अनने छथि खोड़षीके बिआहि...

परिस्थिति

पंडित सुधाकरजीक धर्मपत्नी द्वितीया, स्वकीया
आ हमर नवजात वासना परकीया
दुन्नू अछि बान्हल कुल-शील ससरफानीसँ
वैवस्वत मनुक महावाणीसँ
परनारीक नाम नहि लिअ
परपुरुखकेँ दिअ देह नहि छूअ
मनेच्छाक करू जुनि गप्प, हृदयधारकेँ राखू सम्हारि
देखू काटय नहि बिखघरकेँ पहिनहि दिअ मारि
मोनक वातायनपर टाँग मोट-मोट कारी-कारी परदा
खाइत रहू कामनाक माटि, फकैत रहू निवृत्तिक गरदा
द्रवित, दुखित, भ्रमित रहू होइते आत्माक क्रन्दनसँ
बान्हल छेकल रहू स्मृति-पुराण संहिताक बन्हनसँ
लक्ष्मण-रेखासँ
नियतिक व्यंग्यपूर्ण लेखासँ...

कथा

मुदा, (ई ‘मुदा’ अछि कतेक नग्न, अछि कतेक भग्न)
अर्थार्जनमे सदिखन रहइ छथि सुधाकर जी मग्न
जमिन्दार (पहिने छलाह। आब नेता) देशक द्वारपर प्रति राति
करैत गप्प शप्प ओएह जे जमिन्दारिनीकेँ सोहाति
बँचइ छथि पुराण
बँटइ छथि धर्मक ज्ञान, त्याग, बलिदान
जे एहेन छलाह राजा शिवि, एहेन छलाह दधीचि
कर्तव्यरक्षार्थे अपने सोनितसँ धरा देलनि सींचि
एहेन छलीह गार्गी, मैत्रेयी, सीता, अनुसूया, सावित्री
अपन शक्तिसँ कयलनि गौरवान्वित ई धरित्री
एहेन छलाह पूर्णपरब्रह्म श्रीकृष्ण भगवान
कयलनि गोपिका रूप गंगामे भरिपेख स्नान
...सुधाकरजी बँटइ छथि मर्मज्ञान
आ, एम्हर हुनकर द्वितीया, बनि पूर्णिमाक चान
गबइ छथि मधुर स्वरेँ कोनो नटुआसँ सूनल गान-
केहेन चतुर भउजाइ रे
मोन होइ छइ दिअर संगे जाइ रे
कनकलता सन देहक कंचन फल छइ
कतबो जतनहुँ आँचर तर ने समाइ रे...

सत्य

गबइ छथि मधुर स्वरेँ गान, भय खिड़की लग ठाढ़ि
हमरा हृदयमे उठइए जेना कोसिकाक बाढ़ि
उफनइए कामनाक धार
(की हयत अनर्गल जँ रोकी नइँ मोन-सागरके फेनिल ई ज्वार?)

उपसंहार

फूसि थिक मनुदेवताक स्मृति, फूसि थिक व्यासदेवक गीत
आइ थिक कलियुग, त्रेतामे मरलीह सीता
मरि गेलाह एक पत्नीव्रतधारी पुरुषोत्तम राम
नइँ मरल मुदा, शिवक त्रितीयो नेत्र ज्वालासँ काम
भेलइ नइँ संसारक कोनो क्षति
सीताक मरनइँ की, जीविते छथि एखन लक्ष-लक्ष रति
मरलीह एखनउँ नइँ गौतमक पत्नी अहिल्या सुकामा
मरलाह श्रीकृष्ण, जिबते अछि रूपभिक्षुक हमरा सन सुदामा
आ,
जनमिते रहती नितप्रति अगणित अहिल्या सुकुमारी
(ताकत अवस्से स्वस्थ वृक्ष, माधवी लता थिक नारी)
जावत अछि जीवित एक्कोटा बूढ़ बोको गौतम
नइँ हटि सकत ई तम
गबिते रहती नारी परपुरुखक सहगान
करिते रहत पुरुखजाति सहस्र अहिल्याक धेआन...

स्वगत भाषण

हमरा अन्तरक लुच्चा, लफंगा, बतहा कुकूर
चलए नइँ देखि कोनो आरि-धूर
फनए खेते-खेत
हमर वासनाक विक्षिप्त सन प्रेत
ठाढ़ि छथि अहिल्या फोलि मोन खिड़कीक दुआर
एकर अतिरिक्त सँउसे विश्व थिक असार...

भरत वाक्य

सीताकेँ हरि कय लय जाइए रावण महावीर
रावण की, मारीचहुँ केँ ने मारि सकत रामक सबल तीर
अहिल्याक डरेँ गौतम ऋषि कँपइ छथि थरथर
आब नइँ मुनि-शापेँ हेतीह ओ पाथर...