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किअए नइँ / राजकमल चौधरी

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हमर वज्र आलिंगनमे
मरलि पड़लि कारी सिआह भेलि, सूतलि अछि उर्वशी
बासि बेतासि भात सन शीतल
आ, केओ बताह अन्हार रातिम भैरवो गबइए
इजोतक स्वर्णशिखा, प्रभात-पक्षीकेँ जगबइए
की उठि कए नृत्य कए सकत उर्वशी?
की दू-चारि अलक्षित तारक सजा सकताह दीपावली!
की खिलखिला सकत डारिसँ टूटल फूल?
की मध्य रात्रिमे उगि सकताह दिनकर भगवान?
अस्तु, किएक नइँ, बनि जाइ हम सभ शिव
कान्ह पर राखि, उर्वशीक नइँ, अप्पन सतीक शब
बढ़ि चली दु्रतगतिएँ प्रभात-दिशा दिस एही क्षण
तोड़ि दी करागारक लौहशृंखला सन निशाबन्धन
विध्वंस कए दी दक्ष प्रजापतिक महायज्ञ
आ, बनाबी एकटा नवीन विश्व, महाभव्य??
किएक नइँ भगीरथ बनि पकड़ि आनी ज्योति-गंगा
किएक नइँ उद्धार भए जाथि सगरक असंख्य पुत्र
किएक नइँ नष्ट हो इन्द्रदेवताक अभिमान
किएक नइँ! किएक नइँ!! किएक नइँ!!!