भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भैरवी / राजकमल चौधरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:27, 5 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जेना रातिक बाद भागल अबैत अछि भोर
जेना अन्हारक बाद भागल अबैत अछि इजोतक पिंड
-ओ गीत उमड़ल,
जेना वायुमे उधिआइत कारी-कारी बादरि।
रातिक शरीरसँ जनमल ओ नग्न आ निरर्थक गीत
जेना कोनो नग्न वृद्धा जर्जरा
जेना स्वप्नमे कोनो निरर्थक अपराध।

मुदा, ओ गीत उमड़ल
आ बाढ़ि जकाँ, बिहाड़ि जकाँ समस्त सृष्टि पसरि गेल
जेना अन्हारक बाद इजोतक पिंड
जेना भोर
जेना जलसँ भरल कारी बादरि।

आ वैह गीत पहिल बेर कयल हमर स्वप्न सार्थक
देलक नग्न वृद्धाकेँ अप्रतिम यौवन
रातिक शरीरसँ जनमल ओ नग्न आ निरर्थक गीत
भोरक भैरवीमे परिणत भेल
हमर कविताक माथ अवनत भेल।

(अभिव्यंजना: फरवरी-मार्च, 1961)