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कृषक गीत / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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हम कृषक गबै छी गीत खेत खरिहानक हौ,
अछि अपना श्रमक भरोस आश भगवानक हौ।
हम मानि रहल छी अपनाकेँ कर्मक अधिकारी टा
कर्मक अधिकारी टा
हम जानि रहल छी दुनिआकेँ बस फड़ मँहकारी टा
बस फड़ मँहकारी टा
हम श्रमिक न राखी लोभ कतहु सम्मानक हौ,
हम कृषक गबै’ छी गीत खेत खरिहानक हौ।
लहलहा उठय ई बाधबोन बस हमर पसेनासँ
बस हमर पसेनासँ
थरथरा उठय ई घोर दरिद्रा कृषक सेनासँ
बस कृषकक सेनासँ
हमही सेनानी हरित-क्रान्ति अभियानक हौ,
हम कृषक गबै’ छी गीत खेत खरिहानक हौ।
धरतीक भूख नहि मेटा सकत चन्दापर गेला सँ
चन्दापर गेला सँ
अन्तरक मैल नहि धोआ सकत समता कहि देलासँ
समता कहि देलासँ
मिलि करह जोगाड़ सभक हित पान मखानक हौ,
हम कृषक गबै’ छी गीत खेत खरिहानक हौ।
हमरा न प्रयोजन लोकमतक हम अपनहि मतदाता
हम अपनहि मतदाता
नव बाट देखाबथु हमरा केवल कृषि अनुसन्धाता
बस कृषि अनुसन्धाता
हम उठा कोदारि करब पुनि युद्ध भयानक हौ,
हम कृषक गबै’ छी गीत खेत खरिहानक हौ।
राखी न लालसा अमरताक हम मर्त्त्यकवासी छी
हम मर्त्त्यक वासी छी
गृहमे रहितहुँ जँ पूछी तँ असली संन्यासी छी
असली संन्यासी छी
अछि छूतिमात्र नहि हमरामे अभिमानक हौ,
हम कृषक गबै’ छी गीत खेत खरिहानक हौ।