भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बानर जी / लल्लीप्रसाद पांडेय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 11 अगस्त 2015 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँखों पर चश्मा है सुंदर, सिर पर गांधी टोपी है,
और गले में पड़ा दुपट्टा, निकली बाहर चोटी है।

टेबिल लगा बैठ कुरसी पर, लिखते हैं बानर जी लेख,
करते हैं कविता का कौशल, रहती जिसमें मीन न मेख।

तुकबंदी प्रति मास सुनाते, लिखते लेख विचार-विचार,
कथा-कहानी और पहेली, करते नई-नई तैयार।

रंग-बिरंगे चित्र दिखाते, करते, हँसी-ठिठोली हैं,
लड़के-लड़की सभी किलकते, सुनकर बंदर बोली हैं।