वन्दन करिय सदा जननीक।
सुजल, सुफल, कोमल धरती तल,
मलयाचलक पवन बह शीतल,
श्यामल शस्य शालि सौँ भूतल छवि लखू रम्य अधीक।
शुभ्र ज्योत्स्ना विकसित रजनी,
फुल्ल कुसुम, दु्रमदलयुत जननी,
मधुर सुभाषिनि प्रसन्नवदनी सुख वरदायिनि नीक।
कोटि कोटि मुख मण्डल सौं नित
कलकलनाद कराल उच्चरित
द्विगुणबाहु करवाल विराजित, के कह अबला थीक?
बहुबल विक्रम धारिणी अम्बे,
प्रणमौ तारिणि श्री जगदम्बे,
रिपुदल वारिणि जन अवलम्बे महिमा परम अलीक।
तुअविद्या, तुअ धर्म सनातन,
तोँहि हृदय, तुअ मर्म सकल जन,
तोँही प्राण प्रसारिणि सबतन, माया सकल अहींक।
सब भुज बीच तोँहि मा शक्ती
सभक हृदय तोंही थिकि भक्ती
प्रतिमा तुअ दायिनिवर मुक्ती प्रति मन्दिर सबहीक।
तअ दुर्गा दश पहरण धारिणि
तोँही वाणी विद्या दायिनि वन्दों तव पद नीक।
नमामि कमले अमले अतुले
अम्बे सुजले सुफले विमले
निजजन रक्षिणी रिपुदल शूले वन्दौं पद जननीक।
शस्य श्यामला सरला जननी
विमल सुस्मिता भुषिता अवनी
अति अदूषिता धरणी भरणी पूजनीय सबहीक।