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ईश प्रार्थना / लीलानन्द ठाकुर
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1.
अहीं प्राण ओ ज्योति संसार केँ छी,
अहीं विश्वकाँ नित्य रक्षा करै’ छी।
दिवानाथ ओ चन्द्रमा घोर रात्रि’,
अहीं केर विस्तारकारी सुकीर्ति।
2.
अहाँ बागडोरी सदा हाथ लेने
नवाबी सभै काँ निजेच्छानुसारेँ।
क्षणेमे धनी लोक होयै’ गरीब,
अहीं केर मायाक ई कार्य सर्व।
3.
पराधीन जे देश, भेलै स्वतन्त्र,
स्वतन्त्रो महाकूपमे डूबि गेल।
खसै ओ उठै नाथ! इच्छेँ अहींक,
अहीं एक कर्त्ता, अहीं एक हर्त्ता।
4.
महामोहमे मुग्ध छी भारतीय,
हृदैमे प्रकाशू अहाँ दिव्य ज्योति।
चिन्ही शत्रु ओ मित्र ओ स्वार्थ सत्ता,
स्वदेशस्य मोहान्धताकाँ हटाबी।
5.
हरू द्रोह ओ दुष्टताकाँ सभैक,
करू बुद्धि विद्यासँ सम्पन्न देश।
धरू नाथ! जाईछ भासैत नाव,
उरु भेल जाईछ हा! हा! अन्हेर।