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निदाघ - नृत्य / महावीर झा 'वीर'

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आबि गेल कराल कालक सदृश गर्विल ग्रीष्म सजनी
करथि ताण्डव नृत्य, निमर्म भय विभाकर ग्रीष्म सजनी।
दीनतासँ दलित दीनक हृदय-काननमे यथा नित
करय अविरत वेदना बनि वह्नि-ज्वाला-जाल संसृत।
कर यथा अति उच्च वंशक हृदयपर अपमान ज्वाला,
करय जनु असहाय जनमत वितत चिन्ता चिति कराला,
कय रहल रवि-कर निकरसँ तप्त तहिना आइ अवनी।

करय दुर्जन व्यर्थजनु निज विशिख सम कटु वाक्य वर्षण,
कर धनी धनहीन प्रति जनु कुटिल केतु कटाक्ष क्षेपण,
करथि कृषकक संग जनु व्यवहार भूपक कर्मचारी,
करथि पति-ही नाक प्रति कटु आचरण जनु धर्मधारी।
कर द्युमणि निज कर-निकरसँ तप्त तहिना आज अवनी।

भय तिरस्कृत अन्यसँ अति तप्त मन जनु नीच नर-गण,
करथि निज परिवार पर अपमान ज्वाला जाल-वर्षण,
लादि दुर्भर कर-निकर निर्दय प्रजापर भूप भीषण,
जनु सकल साम्राज्य पर ओ करथि अति अंगार वर्षण।
करथि दिनकर कर-निकरसँ तप्त तहिना आज अवनी।

जनु विकलतासँ क्षणिक जन पाब निग्रह निन्दमे पड़ि,
जनु क्षुधातुर शान्त हो शशिु प्रिय खेलौना पाबि क्षण भरि,
पाबि लघु अधिकार तहिना मुग्ध मन छथि आइ नेता
मानि स्वातन्त्र्यक समरमे सफल अपानकेँ विजेता।
कर कदाचित आबि तहिना श्वसन शीतल सकल अवनी।

निरखी नव आसन्न परिणत शस्य संयुत क्षेत्र प्रतिदिन,
कर दरिद्र किसान वाहित कार्त्तिकक जनु कष्टमय दिन।
सहि विविधि विधि यातना जनु कठिन कारागार गत जन,
कर कोनहुना मधुर मुक्तिक आससँ ओ समय यापन।
कर दिनान्तक आससँ अलि अन्त दुखमय दिवस अवनी।
आबि गेल कराल कालक सदृशगर्विल ग्रीष्म सजनी।