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नाव / श्रीनाथ सिंह
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खाट बनी है नाव हमारी, छड़ी बनी पतवार,
पार जिसे जाना हो, आकर होवे शीघ्र सवार!
बड़ी है मजे़दार नैया,
रही जा नदी पार नैया!
दो-दो पैसे देने होंगे, बात कहूँ मैं साफ,
पर जो तुतला कर बोलेगा, उसको है सब माफ!
यही है रोजगार भैया,
रही जा नदी पार नैया!
दो-दो कंकड़ देकर लड़के बोल उठे तत्काल,
यह लो खैवा, खोलो नैया, तानो भैया पाल!
नैया को जब उसने खोला,
कहा सभी ने बम बम भोला!
उस नैया पर चढ़े, मुझे है गए बहुत दिन बीत,
पर न खिवैया वाला अब तक भूला है यह गीत-
बड़ी है मजेदार नैया,
रही जा नदी पार नैया!