भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नौ / डायरी के जन्मदिन / राजेन्द्र प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:25, 3 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र प्रसाद सिंह |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सभी कुछ सोचकर भी हम
न कर पाते अमिट विश्वास
कल के अनुभवों पर,
क्योंकि कल के
मौन अनुभव
आज की ही मुखर इच्छा के
सँजोए अंश होकर
जी रहे हैं,- जी सकेंगे!
अंश के प्रति
आदमी को मोह,
पूर्णतर के प्रति अजब विश्वास;
काल क्या है?-
अप्रस्तुत-सी पूर्णता का
‘आज’ में आभास!
[१९४९]