सभी कुछ सोचकर भी हम
न कर पाते अमिट विश्वास
कल के अनुभवों पर,
क्योंकि कल के
मौन अनुभव
आज की ही मुखर इच्छा के
सँजोए अंश होकर
जी रहे हैं,- जी सकेंगे!
अंश के प्रति
आदमी को मोह,
पूर्णतर के प्रति अजब विश्वास;
काल क्या है?-
अप्रस्तुत-सी पूर्णता का
‘आज’ में आभास!
[१९४९]