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ये चमकीले तारे / ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी

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अम्माँ-अम्माँ मुझे बता दे, ये चमकीले तारे,
सारी रात छिपा-छिपी ही खेला करते हैं बेचारे!

दिन में कोई नहीं दीखता, क्यों सबके सब सोते,
क्या वे पागल हैं जो सारा समय व्यर्थ ही खोते।
‘खेल समय खेले’ यह इनको कोई नहीं समझाता,
‘सोना ही खोना’ क्या इनकी नहीं समझ में आता।

सूरज बड़ा चतुर है अम्माँ, नित्य सुबह उठ जाता,
उसी समय से अपने सारे कामों में जुट जाता।

सुबह ओस की बूँदें पत्तों से कहती थीं माता,
जो जैसा करता जीवन में, वैसा ही फल पाता।