भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खिलते और खेलते फूल / नरेन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:10, 16 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खिलते और खेलते फूल!
भारत माता का भविष्य हो,
नव युग के तुम नए शिष्य हो,
बढ़ो भारती के आँचल में
हर दिन दूने रात चौगुने-
जीवन की डाली पर झूल!

नभ में फहरे सदा तिरंगा,
बहती रहे देश में गंगा,
भारत की सतरंगी धरती
हर भारतवासी की माता-
इसे कभी मत जाना भूल!

कभी पराई आस न करना,
मेहनत से अपना घर भरना,
बूँद पसीने की बो कर
तुम देखोगे सोना उगलेगी
इस धरती की मिट्टी धूल!

सदा बाँटकर खाना, भाई!
कभी न करना बुरी कमाई!
हँस कर फूल खिलाते, गाते
हिल-मिलकर रहना जीवन में
पथ में कभी न बोना शूल!

बोलो मीठे बोल आम से,
आँख चुराना नहीं काम से,
भारत माता की संतानो,
सेवक और सिपाही बनना-
हर दुश्मन के लिए बबूल!