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खिलते और खेलते फूल / नरेन्द्र शर्मा
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खिलते और खेलते फूल!
भारत माता का भविष्य हो,
नव युग के तुम नए शिष्य हो,
बढ़ो भारती के आँचल में
हर दिन दूने रात चौगुने-
जीवन की डाली पर झूल!
नभ में फहरे सदा तिरंगा,
बहती रहे देश में गंगा,
भारत की सतरंगी धरती
हर भारतवासी की माता-
इसे कभी मत जाना भूल!
कभी पराई आस न करना,
मेहनत से अपना घर भरना,
बूँद पसीने की बो कर
तुम देखोगे सोना उगलेगी
इस धरती की मिट्टी धूल!
सदा बाँटकर खाना, भाई!
कभी न करना बुरी कमाई!
हँस कर फूल खिलाते, गाते
हिल-मिलकर रहना जीवन में
पथ में कभी न बोना शूल!
बोलो मीठे बोल आम से,
आँख चुराना नहीं काम से,
भारत माता की संतानो,
सेवक और सिपाही बनना-
हर दुश्मन के लिए बबूल!