भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खाना है, खिलाना है / अज्ञात रचनाकार
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:50, 17 सितम्बर 2015 का अवतरण
खाना है, खिलाना है,
भइया को सुलाना है।
एक घूंट दादा का, एक घूंट दादी का,
एक घूंट चाचा का, एक घूंट चाची का।
गुटर-गुटर गुट!
एक घूंट भइया का, एक घूंट बहना का,
एक घूंट तुम्हार, एक घूंट हमारा।
गुटर-गुटर गुट!
खाना है, खिलाना है,
भइया को सुलाना है।