भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चांदनी की चादर / शकुंतला सिरोठिया
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:20, 17 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुंतला सिरोठिया |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चांदनी की चादर उढ़ाऊं तुझे मोहना,
सो जा मेरे लालना।
सूरज भी सो गया, पंछी भी सो गए,
डालो की गोदी में फूल सभी सो गए।
तू भी चुप हो जा, झुलाऊं तुझे पालना।
सो जा मेरे लालना।