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चलते चलते एक दिन / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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चलते चलते एक दिन, तट पर लगती नाव।
मिल जाता है सब उसे, हो जिसके मन चाव॥
हो जिसके मन चाव, कोशिशें सफल करातीं।
लगे रहो अविराम, सभी निधि दौड़ी आतीं।
'ठकुरेला' कविराय, आलसी निज कर मलते।
पा लेते गंतव्य, सुधीजन चलते चलते॥