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हिसाब लेकर ही रहूँगा / असंगघोष
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Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:00, 13 अक्टूबर 2015 का अवतरण
तूने
अपनी इच्छानुसार
सब पाया
क्योंकि तू शातिर था
जानता था छल विद्या
और हमें छलता रहा
करता रहा हमारा शोषण।
तुम्हारी कुटिलता
और छल के आगे
मेरी इच्छाएँ ही
पत्थर हो गईं
लेकिन मेरी संघर्ष यात्रा
अब भी जारी है
एक दिन
देना ही होगा
तुम्हें!
मेरे शोषण का हिसाब।