भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यक्ष प्रश्न / असंगघोष
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:02, 13 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=समय को इ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तेरे
ईश्वर के
दो,
चार,
छह,
आठ...
यहाँ तक
कि हजार हाथ हैं
इसके बावजूद
उसका एक भी हाथ
मेरे सिर तक कभी नहीं आता
उसके हाथों में लड्डू है,
तीन-कमान है,
गदा है,
चक्र है,
फरसा है,
त्रिशूल है,
नाना प्रकार के
अस्त्र हैं
शस्त्र हैं
शास्त्र हैं
जो सिर्फ मेरे खिलाफ होते हुए
उसके
या
तेरे ही काम के हैं,
अपने मतलब के लिए
डराते हैं
बता तू और तेरा ईश्वर
इतना स्वार्थी क्यों है?