भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर / असंगघोष

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:10, 13 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=समय को इ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गौरैया ने घर बनाना था

मेरे घर के बरामदे में
जहाँ डायनिंग टेबिल के
ऊपर ट्यूब-लाइट लगी है
यहाँ आने-जाने लगी बार-बार वह
उसने थोड़ी ही देर में रखे
कुछ धास के तिनके
ट्यूब लाइट की
रॉड और चॉक
दोनों के ऊपर बेतरतीब।

मैं बेखबर अनायास उसकी ओर
अपना ध्यान लगा बैठा
उसका तिनकों को
अपनी चोंच में दबाकर आना
फिर लेने जाना तिनका
मुझसे रहा नहीं गया
पत्नी से कहा
कहा क्या, ऑर्डर ही दे बैठा
घास उखड़वाकर
दरवाजे के पास
एक तरफ रखवा दो
ताकि इसे आसानी रहे
बनाने में अपना घर।

जितनी घास रखवाई
उसे थोड़ी ही देर में
गौरैया ने चढ़ा दिया
ट्यूब-लाइट की
रॉड और चॉक
दोनों के ऊपर
ऐसा कई बार हुआ
और जरूरत से ज्यादा
बड़ा घोंसला बन गया
किन्तु जो हुआ अच्छा हुआ
ट्यूब-लाइट के ऊपर से
घर के गिरने का डर खत्म हुआ।

घर बनाने के बाद
दोनों ने प्यार भी किया
उसी ट्यूब-लाइट के ऊपर
और किसी दिन घोंसले में
दे ही दिए अंडे
दिन भर में उसके
अपने घर में आवाजाही ने
मेरे घर-भर की नींद उड़ा दी
बन्द करना पड़ा पंखा भरी गर्मी में
फिर मैं पंखा चालू करने का
सोच भी कैसे सकता था
कहीं कट जाती गौरैया पंखे से
तो अंडों का क्या होता
कौन सेता इन्हें।

रोज गौरैया को आते-जाते देखकर
किसी तरह गर्मियों के दिन निकालता रहा
कभी नर कभी मादा
अपनी उदरपूर्ति के लिए
आते-जाते रहे
मेरा डाला दाना कभी नहीं खाया।

अचानक एक दिन
मुझे सुनाई दी मद्धम स्वर में
चीं-चीं की आवाज
उस घोंसले से आती हुई
जो बना था
ट्यूब-लाइट की
रॉड और चॉक
दोनों के ऊपर
हर्षित हुआ मैं, जैसे
अभी-अभी बना हूँ
पिता।

दोनों गौरैया का
चुग्गे की खोज में
घोंसले से आना-जाना बढ़ गया
अब पेट नन्हें का भी भरना था
मेरा डाला दाना
वैसे ही पड़ा रहा
कई दिन चलता रहा
ऐसे ही
एक दिन अचानक
नर-मादा दोनों के साथ
बच्चा भी बाहर निकला
पहली बार
अपनी छोटी-सी उड़ान पर
कभी दरवाजे
कभी खिड़की के पल्लों पर
कभी पर्दों पर
उसकी पहली उड़ान को देख
हमने घर के सारे पंखे बन्द कर दिए
नौतपा के इन अन्तिम दिनों में भी
पसीने से भीगता विस्मय से देखता रहा मैं
नन्हें की पहली उड़ान!

कल से
ट्यूब-लाइट की
रॉड और चॉक
दोनों के ऊपर
बने इस घर में
कोई नहीं आया है
ना नर
ना मादा
ना नन्हा,
मेरे घर में अब शान्ति ही है
सुनाई नहीं देती अब
चीं-चीं की आवाज।
लेकिन मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है
ट्यूब-लाइट और पंखे चलाने की
शायद वो नन्हा चला जाए
इसी उम्मीद से घोंसला
जो अब रह गया है
ट्यूब-लाइट की
रॉड और चॉक
दोनों के ऊपर
मात्र घास का ढेर
उसे भी,
हटा ही नहीं पा रहा हूँ।