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मैं दूँगा माकूल जवाब (कविता) / असंगघोष
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समय
माँगता है
मुझसे हिसाब
पढ़े क्यों नहीं!
नहीं है इसका जवाब
मेरे पास
तुमने अपनी वर्जनाओं से
काट ली थी मेरी जिह्वा
मेरे होंठ ही
सिल दिए थे
मेरे कानों में
पिघला हुआ शीशा भी
उड़ेल दिया था
मेरी आँखों में
गर्म सलाखें भी
तुम्हारे ही कहने पर
घुसेड़ी गईं
तुम्हारी इस करनी पर
मेरी धमनियों में
खौल रहा है, बहता लहू
समय के साथ
इसका
मैं दूँगा माकूल जवाब
मेरी जगह
पढ़ेंगे मेरे बच्चे
जरूर